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An Inspiring story about How to stop worrying

15th June 2017 By Avinash Chauhan 6 Comments

सब कुछ लिखा है – The Story of R.V.C. Bodley

फ्रेंड्स यह पोस्ट एक ऐसे इंसान की कहानी है (The Story of R.V.C. Bodley) जिसने एक आर्मी ऑफिसर के पद को छोड़ने के बाद, एक आलीशान जीवन को न चुन कर अपने जीवन के 7 साल अरबों के साथ रहकर एक गडरिये का जीवन व्यतीत किया| और उन सात सालों में उसने सच्चे मायनों में जीवन जीना सीखा और इस बात पर यकीन करना कि जो चीजें हमारे कण्ट्रोल में नहीं हैं उसे इश्वर पर छोड़ देना ही बेहतर है| ईश्वर पर विश्वास की यह कहानी हमें सभी तरह की चिंताओं से मुक्त रहकर जीना सीखती है|

यह कहानी है, एक ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर, आर. वी. सी. बोडले (Ronald Victor Courtenay Bodley) की| जिन्होंने 1918 में आर्मी की नौकरी छोड़ने के बाद, अफ्रीका में सहारा के रेगिस्तान में अरबों के साथ 7 साल बिताये| उनकी भाषा सीखी, उनके कपडे पहने, उनके साथ खाया – पिया, उनकी जीवन शैली को अपनाया जिसमे पिछले 2 हजार सालों में बहुत कम परिवर्तन हुआ था| वो भेड़ों के मालिक बने, भेड़ें चराई, अरबों के साथ उनके तम्बुओं में जमीन पर सोये|अरबों के साथ बिताये गए ये सात साल और वहां पर हुए विविध अनुभव आर. वी. सी. बोडले के लिए जीवन के लिए अमूल्य उपहार साबित हुए| बाद में उन्होंने, “विंड इन द सहारा” और “द मैसेंजर” के साथ – साथ अन्य कई चर्चित बुक्स लिखीं| तो आइये जानते हैं उनकी कहानी उन्ही के शब्दों में|

सब कुछ लिखा है - The Story of R.V.C. Bodley

मेरा जन्म 03 March 1892 को पेरिस में  एक अंग्रेज परिवार में हुआ और मैं नौ साल तक फ़्रांस में रहा| इसके बाद, मैंने इंग्लैंड के एटन और रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहर्स्ट में पढ़ायी की| फिर मैंने भारत में ब्रिटिश सैनिक अफसर के रूप में छह साल गुजारे, जहाँ मैंने पोलो खेला, शिकार किया, और हिमालय की यात्रायें की, इसके साथ ही मैंने थोड़े बहुत सैनिक काम भी किये| मैं प्रथम विश्व युद्ध में लड़ा और इसके अंत में मुझे सहायक मिलिट्री अटैशे के रूप में पेरिश शांति वार्ता में भेजा गया| मैंने वहां जो देखा उससे मुझे धक्का लगा और निराशा हुयी| पश्चिमी मोर्चे पर चार साल के कत्लेआम के दौरान हमें विश्वास था कि हम सभ्यता को बचाने के लिए लड़ रहे थे| परन्तु पेरिस शांति वार्ता में मैंने स्वार्थी राजनेताओं को द्वतीय विश्व युद्ध का मैदान तैयार करते देखा| हर देश अपने लिए सबकुछ हासिल कर लेना चाहता था, राष्ट्रिय विद्वेष उत्पन्न कर रहा था| और गुप्त कूटनीति के विवादों को पुर्जीवित कर रहा था|

मेरा मन लडाई से, सेना से, समाज से भर चुका था| अपने कैरियर में मैंने पहली बार जागते हुए रातें बिताई| इस बारे में चिंता करते हुए कि मुझे अपने जीवन में क्या करना चाहिए| लॉयड जार्ज ने मुझे राजनीती में जाने के लिए प्रेरित किया और मैं उनकी सलाह पर अमल कर ही वाला था तभी एक अजीब बात हुयी| एक ऐसी बात जिसने अगले सात सालों के लिए मेरे जीवन की दिशा निर्धारित कर दी| यह अजीब बात एक चर्चा में हुई जो लगभग तीन मिनट चली होगी| मेरी यह चर्चा ‘टेड’ लॉरेंस, “लॉरेंस ऑफ़ अरैबिया” के साथ हुई| लॉरेंस प्रथम विश्व युद्ध द्वारा पैदा हुए सबसे रंगीन और रोमांटिक हस्ती थे| और वे अरबों के साथ रेगिस्तान में रह चुके थे| एवं उन्होंने मुझे भी ऐसा ही करने की सलाह दी| पहली बार में यह विचार मुझे अजीब लगा था|

लेकिन मैं सेना छोड़ने का फैसला कर चूका था और मुझे कुछ तो करना ही था| सिविलियन नियोक्ता मुझ जैसे नियमित सेना के पूर्व अफसरों को नौकरी पर नहीं रखना चाहते थे, खासकर तब जब लोखों बेरोजगार पहले से भरे पड़े थे| इसलिए मैंने वही किया जिसका सुझाव लॉरेंस ने दिया था|

मैं अरबों के साथ रहने चला गया| और मुझे ख़ुशी है कि मैंने ऐसा किया| वहां उन्होंने मुझे सिखाया कि चिंता को कैसे जीता जाये| सभी निष्ठावान मुस्लिमों की तरह वो भी भाग्यवादी हैं| उनका विश्वास है कि मोहम्मद ने कुरान में जो भी लिखा है  वह अल्लाह कि दैवीय अभिव्यक्ति है| और इसीलिए जब कुरान कहता है कि: “अल्लाह ने तुम्हे और तुम्हारे सभी कार्यों की रचना की है,” तो वे इसे शब्दशः स्वीकार करते हैं|

इसीलिये वे जीवन को बड़ी शांती से लेते हैं और कभी जल्दबाजी नहीं करते, न ही चीजों के गड़बड़ होने पर फिजूल गुस्सा करते हैं| वो जानते हैं कि किस्मत में जो लिखा है वो होकर रहेगा और अल्लाह के सिवाय कोई भी उसे बदल नहीं सकता| बहरहाल, इसका ये मतलब नहीं कि विपत्ति आने पर वे हाथ पे हाथ रखकर बैठ जाते हैं, और कुछ नहीं करते|

उदहारण के लिए, मैं आपको बता दूँ कि  जब मैं सहारा में रह रहा था, तो एक भयानक, धधकता हुआ तूफ़ान आया| यह तूफ़ान तीन दिन और तीन रातों तक तांडव मचाता रहा| तूफ़ान इतना प्रबल और भयानक था कि इसने सहारा की रेत को मीलों दूर भूमध्यसागर के पार ले जाकर  फ़्रांस में रोन वैली के पार पटक दिया| हवा इतनी गर्म थी कि मुझे लगा जैसे मेरे बाल झुलसकर सर से गिर रहे हों| मेरा गला सूख रहा था| मेरी आँखें जल रही थीं| मेरे दातों में रेत किरकिरा रही थी| मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि मैं किसी कांच की फैक्ट्री में भट्टी के सामने खड़ा था| मैं पूरी तरह से पगलाया हुआ था| जितना कोई होश हवाश में पगला सकता है| परन्तु अरबों ने उफ़ तक नहीं की| उन्होंने अपने कंधे उचकाये और कहा, “मक्तूब”!……… “यह लिखा है|”

परन्तु जैसे ही तूफान ख़त्म हुआ, वे दौड़कर काम पर चल दिए | और उन्होंने सभी मेमनों को हलाल कर दिया क्योकिं वे जानते थे कि वे वैसे भी मर जाएँगे परन्तु उन्हें तत्काल हलाल कर देने पर शायद वे माँ भेड़ों को बचा लें| मेमनों को हलाल करने के बाद वे भेड़ों को दक्षिणी दिशा में पानी के पास ले गए| यह सब शांती से किया गया था, चिंता या शिकायत या नुकसान पर रोये बिना| और कबीले के मुखिया ने कहा: “यह उतना बुरा नहीं है| हमारा सबकुछ बर्बाद हो सकता था| परन्तु अल्लाह के रहम से हमारे पास नए सिरे से शुरू करने के लिए 40 फीसदी भेड़ें बची हैं|”

मुझे एक और घटना याद है| हम एक दिन कार से रेगिस्तान के पार जा रहे थे कि तभी कार का एक टायर फट गया| ड्राईवर स्टेपनी सही कारवाना भूल गया था| इसलिए अब हमारे पास तीन ही टायर बचे थे| मैं आवेश में आकर छटपटाता एवं बडबडाता रहा, और जब मैंने अरबों से पूंछा कि अब हम क्या करेंगे| तब उन्होंने मुझे याद दिलाया कि आवेश में आने से कोई मदद नहीं मिलेगी, इससे केवल आप ज्यादा गर्म हो जायेंगे| उनका कहना था कि टायर का फटना अल्लाह की मर्जी से हुआ है और इस बारे में कुछ नहीं किया जा सकता| इसलिए हम आगे बढें और पहिये की रिम के सहारे रेंगते रहे| थोड़ी ही देर में अचानक कार झटके के साथ रुक गयी| हमारा पेट्रोल ख़त्म हो गया था! मुखिया ने सिर्फ यही कहा “मकतूब” ! और एक बार फिर ड्राईवर पर इस बात के लिए चिल्लाने की बजाय कि उसने पर्याप्त पेट्रोल क्यों नहीं लिया, सभी शांत रहे| हम अपने मुकाम तक पैदल चलकर पहुंचे और रास्ते में गाना गाते हुए गए|

मैंने अरबों के साथ सात साल गुजारे, उसके बाद मुझे यह विश्वास हो गया कि अमेरिका और यूरोप के न्युरोटिक, पागल और शराबी हडबडी उस परेशानी की देन हैं, जिसे हम अपनी तथाकथित सभ्यता में गुजारते हैं| जब तक मैं सहारा में रहा मुझे कोई चिंता नहीं रही| मैंने अल्लाह के बाग़ में वह आत्मिक संतुष्टी और शारीरिक स्वास्थ पाया जिसे हममें से ज्यादातर लोग तनाव और निराशा से खोज रहे हैं|

कई लोग भाग्यवाद पर नाक – भौं सिकोड़ते हैं| शायद वो सही हों, कौन जानता है? परन्तु हम सभी को यह देखने में समर्थ होना चाहिये कि किस तरह हमारी किस्मत अक्सर हमारे लिए तय कर दी जाती है| उदहारण के लिए, अगर मैंने 1919 में एक गर्म अगस्त के दिन बारह बजकर तीन मिनट पर लॉरेंस ऑफ़ अरैबिया से बात नहीं की होती, तो तब से मैंने जो साल गुजारे हैं वो पूरी तरह से अलग होते|

अपने पिछले जीवन की तरफ पलटकर देखते समय मैं सोंच सकता हूँ कि इसे किस तरह बार – बार उन घटनाओं ने आकार दिया और दिशा दी जो मेरे नियंत्रण के बाहर थीं| अरब लोग इसे मकतूब, किस्मत- अल्लाह की मर्जी कहते हैं| आपकी जो इच्छा हो इसे कह लें| यह आपके साथ अजीब चीजें करती है| मैं तो बस इतना जानता हूँ कि आज सहारा छोड़ने के सत्रह साल बाद, मेरा अब भी विस्वास है कि अवश्यंभावी के सामने खुशी- खुशी समर्पण कर देना ही उचित है| अरबों से सीखी: इस फिलोसफी (दर्शन) ने मेरी नर्व्ज को शांत करने के लिए नींद की हजार गोलियों से ज्यादा काम किया|

इसलिए जब हमारे जीवन पर क्रुद्ध, जलती हुयी हवाएं लपटों की तरह पड़ें| और हम उन्हें रोकने में असमर्थ हों, तो हमें भी उस अवश्यसंभावी को स्वीकार करना चाहिए| और व्यस्त हो जाना चाहिए एवं उन टुकड़ों को उठाकर जोड़ना चाहिए|

इन्हें भी पढ़ें:

  • अब्राहम लिंकन का पत्र
  • एडविन सी. बार्न्स की प्रेरणादायक कहानी.

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About Avinash Chauhan

नमस्कार दोस्तों,
I am Avinash Chauhan founder of आरोही हिन्दी. मैं जॉब के साथ – साथ पार्ट टाइम ब्लॉग्गिंग करता हूँ| मैं यहाँ मोटिवेशनल कहानियां, कोट्स, इम्प्रूवमेंट आर्टिकलस, जीवनी, Eassy & Health के बारे में लिखता हूँ|

Comments

  1. Babita Singh says

    23rd June 2017 at 11:14 pm

    R.V.C. Bodley का जीवन हम सब के लिए प्रेरणादायक है । धन्यवाद अविनाश जी इस बेहतरीन लेख को शेयर करने के लिए ।

    Reply
    • Avinash Chauhan says

      24th June 2017 at 9:04 am

      धन्यवाद बबीता जी….

      Reply
  2. Jamshed Azmi says

    24th June 2017 at 11:39 pm

    बहुत ही बढि़या और मोटीवेशनल पोस्ट है। मुझे बहुत पसंद आया। इसके लिए धन्यावाद।

    Reply
    • Avinash Chauhan says

      25th June 2017 at 8:51 am

      धन्यवाद जमशेद जी….

      Reply
  3. Rohan says

    26th June 2017 at 7:51 am

    Very interesting story.
    M inspired

    Reply
    • Avinash Chauhan says

      26th June 2017 at 8:07 am

      Thanks Rohan……

      Reply

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