Lal Bahadur Shashtri Biography in Hindi
#लाल बहादुर शाश्त्री का जीवन परिचय संक्षेप में
1. | नाम | लाल बहादुर शाश्त्री |
2. | जन्म | 2 अक्टूबर 1904 |
3. | जन्म स्थल | मुग़लसराय, बनारस, उत्तरप्रदेश, ब्रिटिश भारत |
4. | माता – पिता | राम दुलारी, मुंशी शारदा प्रशाद श्रीवास्तव |
5. | पत्नी | ललिता देवी |
6. | बच्चे | दो पुत्रियाँ- कुसुम व सुमन और चार पुत्र- हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक |
7. | व्यवसाय | स्वत्नत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता |
8. | राजनितिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
9. | उपलब्धि | भारत के दूसरे प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त हुआ, एवं 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीतने में महत्वपूर्ण योगदान. |
10. | म्रत्यु | 11 जनवरी 1966, ताशकंद, रूस |
Prime Minister Lal Bahadur Shashtri Biography in Hindi
#लाल बहादुर शाश्त्री का प्रारंभिक जीवन (Lal Bahadur Shashtri Birth & Early Life)
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शाश्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. इनके पिता मुंशी शारदा प्रशाद श्रीवास्तव प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक का कार्य करते थे, जिस वजह से वह मुंशी जी के नाम से विख्यात थे. बाद में इनके पिता की राजस्व विभाग में क्लर्क पद पर नियुक्ति हो गयी.
लाल बहादुर की माँ रामदुलारी एक सरल स्वाभाव की गृहणी थी. जब लाल बहादुर डेढ़ साल (18 महीने) के थे तभी इनके पिता का देहांत हो गया. पिता के न रहने के बाद इनकी माता अपने पिता के घर मिर्जापुर में जाकर इनकी परवरिश करने लगीं. पति के न रहें पर बच्चों की परवरिश करना किसी घरेलु महिला के लिए बहुत मुश्किल काम था. परन्तु इनकी माँ की द्रढता एवं रिश्तेदारों के सहयोग इनकी परवरिश एवं पढ़ाई – लिखाई में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई.
#लाल बहादुर शाश्त्री की शिक्षा एवं वैवाहिक जीवन (Lal Bahdur Shashtri Education & Marriage)
अपने नाना के घर मिर्जापुर में ही लाल बहादुर ने प्राथमिक शिक्षा पूरी की एवं इसके बाद हरिश्चंद्र हाई स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद काशी विद्यापीठ में शिक्षा हासिल की और यही से शाश्त्री की उपाधि हासिल की. काशी विद्यापीठ से शाश्त्री की उपाधि मिलने के बाद लाल बहादुर ने अपना जाति सूचक शब्द श्रीवास्तव को हमेशा के लिए अपने नाम से अलग कर अपने नाम के आगे शाश्त्री लिखने लगे. तभी से लाल बहादुर, लाल बहादुर शाश्त्री के नाम से विख्यात हो गए.
सन 1928 में लाल बहादुर शाश्त्री का विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से संपन्न हुआ. लाल बहादुर शाश्त्री एवं ललिता शास्त्री के छ: सन्तानें हुईं, दो पुत्रियाँ और चार पुत्र। उनके चार में से दो पुत्र सुनील शास्त्री भारतीय जनता पार्टी में एवं अनिल शास्त्री कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं।
#लाल बहादुर शाश्त्री का राजनितिक जीवन (Lal Bahadur Shashtri Political Life)
काशी विद्यापीठ से शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्री जी गांधी जी की देश सेवा एवं उनके विचारों से बहुत प्रभावित थे. जिन्होंने अपना जीवन समाज सेवा एवं गरीबों के हितों की रक्षा में लगाया. उसके बाद भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी अहम् भागीदारी रही.
शाश्त्री जी ने जवाहरलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन, एवं गोबिंद बल्लभपन्त के साथ अपना राजनितिक जीवन शुरु किया. इलाहाबाद में रहते हुए 1929 में उन्होंने भारत सेवक संघ की इलाहबाद इकाई में टंडन जी के साथ काम करना शुरू किया. वहीं से इनके राजनितिक जीवन की शुरुवात मानी जाती है.
स्वाधीनता संग्राम एवं आन्दोलनों में उनकी अहम् भागीदारी की वजह से शाश्त्री जी को कई बार जेल भी जाना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के समय हुयी गतिविधयों में से 1921 में हुए असहयोग आंदोलन, 1930 में हुए दांडी मार्च एवं 1942 में छेड़े गए “भारत छोड़ो आन्दोलन” में शाश्त्री जी की अहम् भूमिका थी. स्वतन्त्रता संग्राम की लडाई में गान्धी जी के नारे “करो या मरो” को रूपांतरित कर “मरो नहीं मारो” का नारा दिया.
9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुँचकर “मरो नहीं मारो” का नारा देकर स्वतंत्रता संघर्ष को एक क्रांतिकारी रूप दे दिया. द्वतीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजो को युद्ध में उलझे होने का पूर्ण फायदा उठाते हुए पूरे देश में स्वाधीनता की आग को भड़का दिया. इस तरह के आन्दोलनों की वजह से अंग्रेज शाशन और उनकी सत्ता अस्त – व्यस्त होने लगी. 11 दिनों तक भूमिगत रहकर अंग्रेजों शाशन की नाक में दम करने के बाद आखिरकार 19 अगस्त 1942 शाश्त्री जी को हिरासत में ले लिया गया.
#लाल बहादुर शाश्त्री का भारत के प्रधानमंत्री बनने तक का सफ़र
स्वतंत्रता के पश्चात् शाश्त्री जी की उत्तर प्रदेश के संसद में सचिव के रूप में नियुक्त किया गया. इसी दौरान गोविन्द बल्लभपन्त के मत्रिमंडल में पुलिस एवं परिवहन विभाग को सँभालते हुए इन्होने पहली बार महिला कंडक्टर की नियुक्ति कर महिला सशक्तिकरण की नींव डाली. इन्होने अपने कार्यकाल में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठी चार्ज करने की बजाय पानी की बौछार द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने का नियम लागू किया.
1929 में इलाहाबाद में रहकर “भारत सेवक संघ” के लिए काम करने के दौरान पंडित नेहरु के साथ इनकी निकटता बढ़ गयी थी . जिसके बाद लाल बहादुर शाश्त्री का कद बढ़ता चला गया. और बहुत जल्द ही इनका नाम भारत के दिग्गज एवं होनहार नेताओं में गिना जाने लगा. और बाद में इन्हें नेहरु जी के मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के प्रमुख पद को सँभालने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
1964 में नेहरु जी की आकस्मिक म्रत्यु के पशाच्त, शाश्त्री जी की काबिलियत, इमानदारी एवं दूरद्रष्टिता के कारण इन्हें भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते समय वो चाहते थे कि उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य बहुत ज्यादा सैधांतिक न होकर व्यावहारिक एवं देश की गरीब जनता की आवश्यकता के अनुरूप हों. और अपने कार्यकाल के दिनों में उन्होंने ऐसा कर दिखाया.
#शाश्त्री जी के शाशनकाल की कठिनाइयाँ
शाश्त्री जी का कार्यकाल कठिनाइयों से भरा हुआ था. उनके कार्यकाल में ही 1965 को पकिस्तान ने अचानक भारत पर हवाई हमला शुरू कर दिया. अचानक हमले के बाद नियमानुसार राष्ट्रपति महोदय ने एक तत्काल बैठक बुलाई जिसमें प्रधानमंत्री शाश्त्री जी, तीनों सेनाओं के प्रमुख एवं मंत्री मंडल के सदस्य शामिल थे.
तीनों प्रमुखों ने सारी स्थिति समझाते हुए शाश्त्री जी से पूछा, कि अब उनका क्या आदेश है? शास्त्रीजी ने तत्काल जवाब दिया; “आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?” प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और “जय जवान-जय किसान का नारा” दिया. इस युद्ध में पाकिस्तान की बुरी तरह से हार हुयी. और भारत की जनता का मनोबल बुलंदियों पर था.
#शाश्त्री जी की रहस्यपूर्ण मृत्यु
1965 के युद्ध में जब भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। तो इस अप्रत्याशित हमले से घबराकर पकिस्तान ने अमेरिका से मदद मांगी. अमेरिका ने भारत पर दबाव डालकर अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की.
आखिरकार अमेरिका एवम रूस ने दबाव डालकर शाश्त्री जी को युद्ध विराम के समझौते के लिए ताशकंद (रूस) बुलाया. समझौते में शाश्त्री जी ने सभी बातों पर अपनी सहमती जाहिर कर दी परन्तु वह युद्ध में जीती हुयी जमीन पकिस्तान को देने के लिए तैयार नहीं थे. आखिरकार अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर शाश्त्री जी से समझौते पर हस्ताक्षर करा लिए गये.
समझौते पर हस्ताक्षर के कुछ ही घंटे बाद 11 जनवरी 1966 की रात रूस में ही प्रधानमंत्री लाल बहादुर शाश्त्री की म्रत्यु हो गयी. हालाँकि उनकी मौत का कारण ह्रदयघात बताया गया परन्तु लोगों का मानना है की उनकी म्रत्यु जहर देने से हुई थी.
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